हरेला पर्व क्या होता है और क्यों मनाया जाता है ?
हरेला भारत के उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो मानसून के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है, हरेला उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला एक हिंदू त्यौहार है।
यह साल में दो बार मनाया जाता है, लेकिन यह मुख्य रूप से सावन/श्रावण उत्सव का हिस्सा है, – हरेला का अर्थ है “हरित दिवस” और यह नई फसल और वर्षा ऋतु का प्रतीक है।
मानसून की शुरुआत :- हरेला मानसून के मौसम की शुरुआत का जश्न मनाता है, जो इस क्षेत्र में कृषि और फसल वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
कृषि :- यह त्यौहार कृषि और फसलों की कटाई के इर्द-गिर्द केंद्रित है, लोग धरती की पूजा करते हैं और अच्छी फसल के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
अनुष्ठान :- इस त्यौहार में छोटी टोकरियों या ट्रे में बीज बोने जैसे अनुष्ठान शामिल हैं, जिसके बाद प्रार्थना और पूजा की जाती है। लोग अपने घरों और मंदिरों में शिव और पार्वती की मूर्तियाँ भी स्थापित करते हैं।
शिव और पार्वती :- इस त्यौहार में शिव और पार्वती की पूजा की जाती है, जिन्हें धरती और कृषि का संरक्षक माना जाता है।
पर्यावरणीय महत्व :- हरेला प्राकृतिक संसाधनों, जैसे पानी और मिट्टी के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालता है, जो कृषि के लिए आवश्यक हैं।
उत्सव :- यह त्यौहार 9 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, गीत और नृत्य शामिल होते हैं।
विशेष व्यंजन :- इस दिन पुए, सिंघल (मीठा व्यंजन), उड़द दाल के पकौड़े, खीरी और उड़द दाल की भरवां रोटी जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
पारिवारिक समारोह :- हरेला पारिवारिक समारोहों का समय होता है, और लोग अपने प्रियजनों के साथ त्योहार मनाने के लिए एक साथ आते हैं।
हरेला पर्व क्या होता है और क्यों मनाया जाता है ?
पारंपरिक प्रथाएँ :- इस त्योहार में पेड़ लगाने जैसी पारंपरिक प्रथाएँ भी शामिल हैं, जो संरक्षण और स्थिरता के महत्व का प्रतीक हैं।
यह त्यौहार कृषि विज्ञान और पर्यावरण जागरूकता को भी समर्पित है।
कुल मिलाकर, हरेला कुमाऊँ क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मानसून के मौसम की शुरुआत, कृषि और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्व का जश्न मनाता है, लोग मंदिरों में जाते हैं और भगवान शिव, भगवान गणेश और देवी पार्वती जैसे देवताओं की पूजा करते हैं।
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